वेद को गडरिये के गीत कहने की शुरुआत कब हुई ?

महाभारत के बाद जब  ऋषि ( वैज्ञानिक ) परम्परा ख़त्म हुई तब  अज्ञानियों ने समाज में वेद के नाम से  पुराण की पोपलीला  एवं अज्ञानियों  द्वारा  वेद मंत्रो के अश्लील अर्थ किये गए, तभी से वेद मंत्रो को गडरिये के गीत कहने की शुरुआत  हुई। 
 
 महृषि दयानन्द जी ने वेद को समझ लिया था और वे इस दूषित वातावरण को  ख़त्म करने का प्रयास कर ही रहे थे कि  उनको अल्पायु में ही मार दिया गया । 
महृषि के बाद उनके अनुयायियों ने वेद को पूर्ण समझे बिना आर्ष गुरुकुल की परम्परा शुरू की।  ये लोग संस्कृत व्याकरण पढ़कर अपने को वेद का  विद्वान् कह रहे है जबकि इनको पता नहीं है, कि वेद (विज्ञान ) क्या है।  
वेद शुद्ध रूप से विज्ञान का ग्रंथ है  इसमें समस्त ब्रह्माण्ड  का विज्ञान दिया हुआ है कि ये  ब्रह्माण्ड कैसे बना, और आज भी कैसे कार्य कर रहा है। 
वर्तमान में १३५ वर्षो के बाद महृषि दयानन्द के अनुयायी ऋषि अग्निव्रत नैष्ठिक जी ने महृषि के कार्य को पूरा किया है और अपने ग्रन्थ  वेद विज्ञान -आलोक में जो कि  ऐतरेय ब्राह्मण का भाष्य है इससे सिद्ध कर दिया है कि वेद शुद्ध रूप से विज्ञान का ग्रन्थ हैं।    


मेरा आर्ष गुरुकुल से पढ़े  सभी संस्कृत व्याकरण  के विद्वानों से आग्रह कि यदि आपकी श्रद्धा महृषि दयानन्द  और वेद के प्रति थोड़ी भी है तो वेद विज्ञान -आलोक:  को पढ़कर, वेद के विज्ञान  को समझे, जिससे समाज में शुद्ध विज्ञान प्रस्तुत हो सके। शुद्ध विज्ञान से ही  विश्व के विनाश को बचाया जा सकता है । 


मेरी जानकारी में आया है कि आर्यगण चंडीगढ़ कि करोड़ो रूपये लगकर वेद (विज्ञान ) के लिए शोध केंद्र बना रहे है और शोध करने का  इंचार्ज उनको बनाया  जा रहा है, जिनको वेद क्या है ? ये मालूम भी नहीं है। 


मेरा आर्यगण से निवेदन है जिस संस्कृत व्याकरण जानने वाले को  इंचार्ज बनाया जा रहा है उसको निर्देश दिए जाये कि  पहले वेद में क्या विज्ञान है हमें ये बताये , जिससे समाज में चली आ रही संस्कृति कि वेद गड़रियो के गीत है इसका ख़त्म किया जा सके। 
थोड़े लिखे को ज्यादा समझने का कस्ट करे।